Tuesday, May 8, 2012

चित्कित्सा में विकल्प : प्रतिवेदन - ( १ )


चित्कित्सा में विकल्प... कुछ स्पष्टीकरण एवं विज्ञ जनों द्वारा की गयी टिप्पड़ियों पर सधन्यवाद प्रतिवेदन : ( १ )

सर्व प्रथम डॉ. टी. एस. दाराल साहेब को नमन...! वे कुछ ऐसा लिख देते हैं कि प्रतिवेदन देना
आवश्यक हो जाता जाता है उन्ही के वक्तव्य से बात शुरू करते हैं |

" सरकार को दोष देना सही नहीं । सरकार ने आयुष के नाम से जो योजना चलाई है उसके अंतर्गत सभी बड़े अस्पतालों में आयुर्वेदिक यूनानी और होमिओपेथिक क्लिनिक्स खोली जा रही हैं । "

अपने ही वक्तव्य से उद्धृत :
" क्या लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुनी हुयी सरकार का यह दायित्व नहीं है कि वो महज काग़ज़ी योजनाओं  की रस्म-अदायगी करने के बजायआम जन के लिए सस्ती एवं वैकल्पिक स्वास्थ्य सेवाएं भी उपलब्ध कराये..! "

इन योजनाओं का लाभ कितना-किसे पहुंचा है यह हर कोई जानता है और इस विषय पर किसी को शायद ही कोई संदेह हो...! योजना बनाकर खाना-पूर्ति करना एक बात है और किसी पद्धति विशेष को प्रश्रय देकर हर जायज-नाजायज तरीके से बढ़ावा देना दूसरी बात है काश इस बढ़ावे का एक-दो  प्रतिशत भी यदि अन्य चिकित्सा पद्धतियों को मिल जाये तो आने वाले १० वर्षों में हमारा देश चिकित्सा के क्षेत्र में विश्व में न सिर्फ सर्वोपरि होगा बल्कि यहाँ की समेकित चिकित्सा का दुनिया के किसी देश के पास कोई विकल्प भी नहीं होगा |

" चिकित्सा के क्षेत्र में बिना मान्यता प्राप्त उपचार करना तो क्वेकरी ही कहलाएगा । नियम कानून भले के लिए ही बनाये जाते हैं ।"

जीबज़ा फ़रमाया - नियम कानून तो समाज देश व लोगों  के भले के ही लिए बनाये जाते हैं | '  लेकिन उनका सही जानकारी के साथ सही परिप्रेक्ष्य  में संदर्भित होना भी उतना ही आवश्यक है |

" चिकित्सा के क्षेत्र में बिना मान्यता प्राप्त उपचार करना तो क्वेकरी ही कहलाएगा ।"

यह वक्तव्य अपूर्ण है जिससे सामान्य-जन के मन में  बहुत बड़े भ्रम पैदा हुए हैंऔर पूरी तरह से ग़लत अवधारणाओं का प्रचार-प्रसार हुआ है |

सही बात तो यह है कि चिकित्सा के क्षेत्र में सरकारी मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत शैक्षणिक योग्यता का प्रमाणपत्र लिए बिना उस पद्धति विशेष की चिकित्सा व्यवस्था का उपयोग करते हुए चिकित्सा कार्य करना क्वेकरी है और ग़ैर-क़ानूनी भी...!

लेकिन किसी भी मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति के अलावा अन्य किसी भी ग़ैर मान्यता प्राप्त  वैकल्पिक अथवा लोक-चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत सुरक्षित एवं सफल चिकित्सा कार्य करना न कानून-विरुद्ध है और न ही इसे क्वेकरी या नीम-हकीमी का दर्ज़ा दिया जा सकता है |

फिर नीम-हकीमी ' ( क्वेकरी Quackery  ) किसे कहेंगे...?

नीम-हकीमी ( क्वेकरी Quackery  ) को २ हिस्सों में बाँटें तो पहले हिस्से को संक्रमण नीम-हकीमी तथा दूसरे को विशुद्ध नीम-हकीमी कह सकते हैं |


संक्रमण नीम-हकीमी :

यह तुलनात्मक रूप से कम ख़तरनाक नीम-हकीमी होती है इसके अंतर्गत चिकित्सा करने वालों के पास किसी न किसी चिकित्सा पद्धति का बुनियादी एवं आवश्यक ज्ञान होता है अधिकांश मामलों में वे किसी न किस पद्धति विशेष के मान्यता प्राप्त चिकित्सक भी होते हैं लेकिन अपनी पद्धति से इतरअक्सर वे अन्य मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धतियों की औषधियों का अनधिकृत व अवैधानिक उपयोग ( अथवा दुरूपयोग ) अपने चिकित्सा कार्य के दौरान करते पाए जाते हैं इस अनधिकृत व अवैधानिक उपयोग ( अथवा दुरूपयोग )  में रोगियों को औषधियों का नुस्खा देने से लेकर औषधियों को सीधे या अन्य औषधियों में मिला कर देना शामिल है |

उदहारण के लिए - हमारे देश में आयुर्वेद पद्धति के लगभग सभी स्नातक चिकित्सक एलोपैथी की औषधियों का धड़ल्ले से इस्तेमाल करते हैं इसी प्रकार बहुत सारे एलोपैथिक चिकित्सक भी अब विशेष मामलों में स्वयं ही होम्योपैथिक दवाएँ देने लगे हैं या उनको लेने की अनधिकृत सलाह देते हैं |

यह संक्रमण नीम-हकीमी का सटीक उदहारण है |


शुद्ध या विशुद्ध नीम-हकीमी –

 यही क्वेकरी या नीम-हकीमी का वो प्रकार है जिसकी बाबत कहा जाता है :" नीम-हाकिम खतरा-ए-जान " |    ये समाज के लिए घातक खतरनाक और चिकित्सा के नाम पर एक तरह का आतंक फ़ैलाने वाले वो लोग हैं जिन्हें चिकित्सा जगत का सबसे बड़ा दुश्मन कहा जाये तो भी अतिश्योक्ति नहीं होगी |

इन लोगों के पास न तो किसी मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति का व्यवस्थित - शैक्षणिक ज्ञान होता हैन कोई डिग्री या सनद और न ही किसी अन्य वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति की दीर्घ परंपरा के ज्ञान का वस्तुगत आधार |

ये ही वो लोग हैं जो अपनी सुविधानुसार लगभग सभी चिकित्सा पद्धतियों - मुख्यतः ऐलिपैथीकी दवाओं का हर प्रकार से ग़ैर-क़ानूनीअनधिकृत और पूरी तरह से अविवेकपूर्ण एवं खतरनाक ढंग से दुरुपयोग करते हैं |

ये ही असली क्वेकर्स हैंअसली नीम-हाकिम हैंअसली झोला-छाप डॉक्टर हैंबिलकुल विशुद्ध क्वेकर्स ...!

ये न सिर्फ चिकित्सा जगत के बल्कि पूरे समाज व देश के सबसे बड़े अपराधी हैं और इन्हें आतंककारियों का ही दर्ज़ा दिया जाना चाहिए  |   
                
चिकित्सकों की एक तीसरी श्रेणी भी है जिन्हें भूलवश नीम-हाकिम ही मान लिया जाता है, क्योंकि उनके पास भी किसी मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति की कोई डिग्री या सनद नहीं होती |
लेकिन क्योंकि वे अपने चिकित्सा कार्य में किसी भी मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति की औषधियों का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में प्रयोग-उपयोग नहीं करते हैं इसलिए न ही उन्हे क्वेकर या नीम-हाकिम कहा जाना चाहिए और न ही वे किसी भी रूप में अपराधी हैं |

उनके पास मान्यता प्राप्त सनद का न होना उन्हें अपराधी नहीं बनाता,  जैसा कि आमतौर  पर लोग ऐसी धारणा बना लेते हैं वास्तविकता ये है कि कानूनन किसी भी मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति के अनुशासन  में चिकित्सा कार्य करने  के लिए उस पद्धति विशेष का वैध प्रमाण-पत्र होना अनिवार्य एवं   परमावश्यक है |

लेकिन, मेरे देखे , यदि कोई व्यक्ति मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धतियों  से अलग अपनी स्वयं की अथवा लोक चिकित्सा - परंपरा की औषधियों से निरापद तथा परिणामकारी चिकित्सा कार्य करता है तो वह किसी भी अन्य मान्यता प्राप्त डिग्रीधारी चिकित्सक के समकक्ष ही सम्मान का अधिकारी होना चाहिए |

क्योंकि ये ही वो चिकित्सक है जो इस देश की हज़ारों वर्ष पुरानी अनेकों लोक-चिकित्सा पद्धतियों के समृद्ध ज्ञान की दीर्घ परंपरा को अक्षुण रखे हुए हैं उसके संवाहक बनकर उसे जीवित  और जीवंत बनाये हुए हैं मैं व्यक्तिगत स्तर  पर उनका ह्रदय से अभिनन्दन करता हूँ नमन करता हूँ |

चिकित्सकों के इसी वर्ग में वे लोग भी आते है जिन्होंने अपने ही शोध कार्य से विभिन्न व्याधियों के निवारण हेतु सर्वथा नयी औषधियों की खोज की है अथवा एक नयी चिकित्सा पद्धति - प्रणाली ही इजाद कर ली है |


( बंधुगण,  इस नाचीज़ को चिकित्सकों की उपरोक्त अंतिम श्रेणी का सदस्य मान सकते है...)

( अगले सन्देश में जारी...!)

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