Friday, June 1, 2012

चिकित्सा में विकल्प की आधारभूत आवश्यकता : भाग – २


चिकित्सा में विकल्प की आधारभूत आवश्यकता :  भाग  

कुछ ज्वलंत प्रश्न :

è चीनजापानकोरिया जैसे देशों ने अपनी-अपनी चिकित्सा पद्धतियों को आधुनिक स्वरुप दिया और आज वे एलोपैथी से बराबरी की टक्कर ले रहे हैं लेकिन हमारे देश की सारी सरकारें विदेश से आयातित महज एक चिकित्सा पद्धति को पूरी ताकत से इतने बड़े देश पर बेशर्मी से थोपती आ रही हैं व थोपे जा रही हैं |

è  क्या संविधान में केवल पाश्चात्य चिकित्सा या एलोपैथी की अनिवार्यता है ..

è क्या लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुनी हुयी सरकार का यह दायित्व नहीं है कि वो महज काग़ज़ी योजनाओं  की रस्म-अदायगी करने के बजाय, आम जन के लिए सस्ती एवं वैकल्पिक स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराये..! और ग़रीबमँहगाई से त्रस्त एवं अभावग्रस्त व्यक्ति को एक ही पद्धति से इलाज कराने के लिए ( किसी भी निहित स्वार्थ  के लिए ) बाध्य न करे |  

è  सरकार द्वारा संचालित मेडिकल काउन्सिल ऑफ़ इंडिया  ( MCI ) के द्वारा मान्यता प्राप्त महज ६-७ चिकित्सा पद्धतियाँ हैं इनके आलावा यदि  कोई व्यक्ति  अन्य किसी वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के अंतर्गत चिकित्सा कार्य करता है तो  MCI  उस पर रोक तो नहीं लगा सकती लेकिन इस सर्वोच्च सेवा कार्य के लिए किसी प्रकार का सम्मान देना तो दूरउस पर इतने अंकुश और निषेधात्मक दिशा निर्देश जारी किये जाते हैं कि उसकी छवि  एक अपराधी जैसी बना दी जाती है |

è पूर्ण-रूपेण चिकित्सा कार्य में संलग्न एक व्यक्ति आपने नाम के आगे  'डॉक्टरनहीं लिख सकता..., विचित्र बात है..! क्योंकि उसकी पद्धति को  MCI  से मान्यता प्राप्त नहीं   है  फिलहाल यह मामला कोलकता उच्च न्यायलय में विचाराधीन है |

è ग़ौर करने लायक बात है -   पिछले चन्द दशकों मेंहमारे देश में सभी क्षेत्रों में पाश्चात्यीकरण की आयी जबरदस्त  आँधी ने भारतीय जन-मानस को एक तरह से आपने सम्मोहक जाल में बाँध लिया है 

è जिसकी वजह से शिक्षा व्यवसाय नौकरी इत्यादि सभी क्षेत्रों में प्रमाणीकरण ( Certification  ) का महत्त्व इतना बढ़ गया है कि उसके बिना कोई भी और कैसी भी प्रतिभा पूर्णतः बेमानी है |


è ऐसे में वैकल्पिक चिकित्सा वालों की योग्यता एवं अर्जित ज्ञान  किसी भी तथाकथित प्रमाणीकृत चिकित्सक की अपेक्षा कितना भी अधिक व्यापकव्यावहारिक,  इस देश की जीवन-शैली के अनुरूप व कितने ही गहरे अनुभव की  दीर्घ परंपरा से आया होलगता यही है कि वो  सब न सिर्फ बेमानी है बल्कि किसी मान्यता प्राप्त प्रमाणपत्र के अभाव में  झोला छाप डॉक्टर के झोले का हिस्सा बनकर रह जाता है और चिरस्थायी तौर पर एक संदिग्ध नज़रिए की विषय-वस्तु बना रहता है |

è दुर्भाग्यवश हमारा मीडिया भी वैकल्पिक  चिकित्सा के प्रति बेहद असंवेदनशील तथा पूर्वाग्रह से ग्रसित है |

कुछ संभावित कारगर सुझाव :

è चिकित्सा पद्धतियों को मान्यता देने का निर्धारण ( Criteria  ) उस पद्धति विशेष के अंतर्गत किये गए रोग / व्याधि विशेष अथवा अनेक व्याधियों के सफलसुरक्षित तथा सेहत-प्रदाता इलाज के परिणाम  के आधार पर किया जाये ( जिसको प्रमाणित करने के लिए कुछ सौ रोगियों की चिकित्सा का प्रमाण पर्याप्त होगा ) न कि उस पद्धति का अनुसरण करने वाले अनुयायियों की  संख्या ( जो लाखों में होनी आवश्यक है ) के आधार परजो कि वर्तमान में किसी भी नयी चिकित्सा पद्धति को मान्यता देने का प्रमुखतम आधार है |

è साथ हीसरकारी अनुदानों का वितरण भी विभिन्न बीमारियों की सफल-सुफल चिकित्सा की संख्या पर आधारित हो न कि किसी पद्धति के अनुयायियों की संख्या के आधार पर |

è चिकित्सा कार्य एक बेहद संवेदनशील यथा वैज्ञानिक कार्य प्रणाली है और इसमें कार्य-निष्पादन करते समय मरीज़ के स्वास्थ्य की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाना सर्वोच्च प्राथमिकता वाले कर्तव्यों में से एक है |  संयोगवशहमारी सरकारी प्रश्रय प्राप्त पद्धति इस मूल्यांकन में अन्य वैकल्पिक पद्धतियों के मुक़ाबले पूरी तरह से असफल रही है.. |

è ऐसे में किसी पद्धति को महज उसके बहुमत की संख्या के आधार पर सर्वश्रेष्ठ घोषित करना पूर्णतः अदूरदर्शितापूर्ण तथा अवैज्ञानिक नज़रिया ही है |

è वस्तुतः होना तो ये चाहिए कि चिकित्सकीय कार्य में किसी पद्धति के अनुयायियों का बहुमत नहीं वरनकिसी भी पद्धति विशेष के द्वारा निष्पादित सफलसुरक्षितअनिष्टकारीहानिकारक प्रतिक्रियाओं व पार्श्व प्रभावों से मुक्तसुफलविधायक स्वास्थ्य प्रदाता तथा व्याधियों को महज अस्थायी तौर पर शांत न करउनका पूर्णतः उन्मूलन करने वाला परिणामकारी इलाज ही प्रमुखतम आधार हो | 

è लिहाज़ासरकारी स्तर पर चिकित्सा सम्बन्धी कोई भी निर्णय लोकतान्त्रिक आधार के बजाय वैज्ञानिक दृष्टिकोण विवेकपूर्ण सामाजिक चेतना  तथा संवेदनशीलता  से परिपूर्ण तो ही इस दिशा में कुछ सृजनात्मक व सर्व-कल्याणकारी  ठोस कदम उठाये जा सकते हैं |

è कोई भी एक चिकित्सा पद्धति हजारों रोगों पर १०० प्रतिशत प्रभावीकारगर एवं परिणामकारी नहीं हो सकती इस स्थिति में विभिन्न पद्धतियों को उनकी ख़ूबियों - ख़ामियों को ध्यान में रखते हुएउनमें आपस में एक तालमेल बिठा  कर,  उन्हें यदि एक दूसरे की पूरक पद्धति बना कर एक नयी सुव्यवस्थित   समेकित ( Integrated  )  चिकित्सा पद्धति का विकास किया जाये तो हमारे देश  में एक ऐसा चिकित्सा ( पद्धति ) का तंत्र (System  ) खड़ा हो सकता है जिसकी मिसाल  समूचे विश्व में भी नहीं मिल सकेगी |


                 
सादर,
शेखर जेमिनी  

2 comments:

virendra sharma said...

वैकल्पिक चिकित्सा ज़रूरी है .शरीर को किसी विध आरमा भी तो मिले आधुनिक चिकित्सा के प्रहार से .आक्रामक इलाज़ से .

virendra sharma said...

विचारणीय मुद्दे उठाती है यह समेकित सेहत से जुडी पोस्ट जो समेकित चिकित्सा की सही बात करती है समीचीन सुझावों के साथ।