Friday, May 4, 2012

अन्तश्चेतना : विकास यात्रा के चंद दुर्गम पड़ाव

अन्तश्चेतना : विकास यात्रा के चंद दुर्गम पड़ाव :

प्रथम सोपान



कुछ भी से सबकुछ तक...  
पठन से सूचना तक...  
सूचना से चिंतन तक...    
चिंतन से  मनन तक...  

मनन से तर्क ( कार्य-कारण निष्पादन ) तक...   
तर्क से विज्ञान तक...    
और ( यदि संभव हो तो ) 
विज्ञान से ज्ञान, सम्पूर्ण ज्ञान तक...    


द्वितीय सोपान


अभय से समर्पण तक... 
बुद्धि से प्रज्ञा तक...

कारण से अकारण तक...
ज्ञात से अज्ञात तक... 



श्रव्य से अनाहत तक... 
विस्मृति से दर्शन तक... 
स्वास्थ्य से विदेह तक... 
सृजन से अकर्म तक...

सच से सत्य तक... 


अचौर्य से अपरिग्रह तक...
अहिंसा से प्रेम तक...
प्रेम से करुणा तक... 
विचार से ध्यान तक...

शक्ति से भक्ति तक... 
मुखर शब्द से निशब्द मौन तक...
सब कहीं से कहीं नहीं तक...  
' सब कुछ ' से ' कुछ न ' तक...  


तृतीय सोपान



स्वभाव से विशुद्ध भाव तक... 
स्वानुभूति से विशुद्ध अनुभूति तक... 
स्वचेतना से विशुद्ध चेतना तक...

स्वयं - तंत्रता से स्वतः - तंत्रता तक...



अज्ञान से परम अज्ञान तक... 
अबोध से परम अबोध तक... 
अप्रेम से परम अप्रेम तक... 
अपूर्ण से परम अपूर्ण तक... 


और अंततः अनीश्वरत्व से परम अनीश्वरत्व तक...




( सोपान व उनके पड़ावों  में कोई निश्चित क्रम नहीं है... सिर्फ अंतिम पड़ाव सुनिश्चित है...)




-- शेखर जेमिनी 

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