Monday, April 30, 2012

मंगल भवन अमंगल हारी...


मंगल भवन अमंगल हारी...

मंगल पर जीवन है या नहीं, यह खोज बहुत हो चुकी 
हमारे अपने जीवन में मंगल है या नहीं, इसकी खोज कौन करेगा ?

अब यह खोज ज़रूरी हो गयी है कि कैसे म सबका जीवन मंगलमय हो ?
कैसे ऐसी शुभकामनायें जीवन में रें कि समस्त अस्तित्व ही सक्रिय शांति से भरकर मंगलमय हो उठे ...

लेकिन हमारी बेचैनी हमें हमेशा वर्तमान के क्षण, ‘अभी और यहीं’ के सत्य से दूर भगाती रहती है, हमारी रूचि को अनावश्यक रूप से कहीं और ले जाकर पटक देती है |

यहीं पर हमें सबसे महत्वपूर्ण सवालों से रु-ब-रु होने की ज़रूरत है, मसलन :

   è  क्या हम आतंरिक समृद्धि से लबरेज शांति को उपलब्ध हुए हैं ?

   è  क्या हमारी विनाशकारी सामूहिक चेतना ने सृजनात्मक ध्यान 
           की एक झलक भी ली है ?

   è  क्या हमने अपने घर, शहर, देश तथा अपनी पृथ्वी को स्वर्ग 
          बना लिया है ?

   è  फिर हम दूसरे ग्रहों के जीवन की चिंता में अपनी ज़मीनी हकीकत 
           की उपेक्षा क्यूँ कर रहें है...?    काहे..?


    और यदि वहाँ जीवन मिल भी जाएगा तो हम क्या करेंगे..?
    ज़रा हमारी काबिलियतों की एक नमूना-ए-बानगी 
    नोश-फरमाईये...

   n   वहाँ  ( अन्य ग्रह – मंगल ) के प्राणियों पर हमला,
   n   उनके समस्त साधनों पर कब्जा जमाने की कोशिश,
   n   आतंक तथा आतंकवाद के आडंबरपूर्ण विरोध का आतंक,
   n   युद्ध और  बम-विस्फोट तथा विध्वंस और हिंसा के नए 
          आयाम-प्रतिमान,
   n   वहाँ के प्राणियों का बहुआयामी शोषण,
   n   बेहद गंदी और घिनौनी राजनीतिक चालें,
   n   अंधविश्वासों और मतान्धताओं से पूरित (अ)धार्मिक शिक्षा,
   n   संवेदनहीन जड़ताओं एवं कट्टरपंथी मूढताओं को पैदा करने 
          की पूर्णतः भ्रष्ट शैक्षणिक प्रणाली व (कु)व्यवस्था,
   n   अस्वास्थ्यकरतथा प्रकृति-विरोधी विज्ञान के दुरूपयोग का
          प्रचार-प्रसार,
   n   पर्यावरण प्रदूषण जैसे घिसे-पिटे प्रदूषण की जगह सर्वथा नए 
          और रोमांचकारी प्रदूषण-जनकों की विशाल जमात तैयार करना 
          आदि, इत्यादि । 


कुल मिलाकर यही तो हमें आता है, इन्ही सब में तो हमारी क्षमतायें अपनी पूर्णता पर होती हैं 

   è  हमारी निष्क्रिय शांति भी किसी आसन्न भयानक अशांति 
         के घटित होने से पहले की मरघटी शांति होती है |

   è  नरक निर्माण की कला में हम सिद्धहस्त हैं, पारंगत हैं...!

   è  हम मंगल पर भी अमंगल फैला देंगे ...!!

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                      ओम्...
           पूर्णमदः पूर्णमिदं, पूर्णात्पूर्णमुदच्यते,
           पूर्णस्य पूर्णमादाय, पूर्ण मेवावशिष्यते 
              ओम् शांतिः शांतिः शांतिः !!!

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